वनमंडल अधिकारी नर्मदापुरम द्वारा अपने ही कर्मचारियों से यह कैसा भेदभाव — वाह वन विभाग.

Narmdapuram

नर्मदापुरम  28/4/2025    नर्मदापुरम  वन-विभाग में विभागीय दंड देने के अधिकार प्राप्त और न्याय संगत निर्णय लेने वाले अधिकारी ही अपने निर्णय में पारदर्शिता नहीं रख रहे..? देखने में आया वन विभाग के काष्ठगार ताकू डिपो में पदस्थ रेंजर सहित 4 वन कर्मियों को मुख्यालय ताकू में उपस्थित न मिलने के कारण डीएफओ नर्मदापुरम ने वन कर्मचारी वनरक्षक मुकेश द्विवेदी, कन्हैयालाल मीणा , संजीव दुबे वनपाल और राधेश्याम लिटोरिया सहित उप वन क्षेत्रपाल को निलंबित किया था जो 4 माह हो चले आज भी निलंबित हैं.! जिन्हें निलंबन काल में लगभग 1,25 लाख रुपए प्रतिमाह कि हिसाब से अब तक 5 लाख रु का निर्वाह भत्ते का भुगतान वन मंडलाधिकारी नर्मदापुरम द्वारा किया जा चुका, साथ ही उनके निलंबित रहने से उनके दायित्वों का बोझ अन्य कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा, कर्मचारियों को सामान्य रूप से दंड देने के लिए मुख्य शास्ती के योग्य अपराध में निलंबन का प्रावधान दिया गया है जिसे विभागीय जांच उपरांत दंड का निर्धारण किया जाता है, जो दीर्घ शास्ती के रूप में कठोर दंड होते हैं। और साधारण कर्तव्य त्रुटि के लिए कारण बताओ पत्र जारी किया जाते हैं इसके लिए कर्मचारी को निलंबित किया जाना आवश्यक भी नहीं होता..? जिसमें शासन के निर्देश भी हैं फिर भी विगत 5 माह से उपरोक्त कर्मचारी निलंबन में ही रखे गए हैं क्यों ..? दूसरी तरफ जबकि 11,85,000 रु के रालेगण सिद्धि महाराष्ट्र के भ्रमण में फर्जी होटलों के लाखों रुपए के बिल बना कर घपला किए जाने और 8,81,700 रुपए के औषधि बीज खरीदी मामले में निलंबित किए गए हरगोविंद मिश्रा को मात्र 45 दिनों के बाद बहाल कर दिया गया..! जिनकी विभागीय जांच चल रही है, यह तो कर्मचारियों के प्रति किए जाने वाले भेदभाव को दर्शाता है फिर यहां शासन के निर्देशों को भी नजर अंदाज किया गया है, वन कर्मचारी संघ के संरक्षक द्वारा इस विषय में निवेदन किया जा रहा है लेकिन विभागीय आला अधिकारी इस पर ध्यान नहीं दे रहे ऐसा क्यों..? फिर देखा जाए तो ताकूं डिपो में तो कर्मचारियों के लिए पद के अनुरूप रहने के लिए कोई आवास भी नहीं हैं न वहां विभाग के जिम्मेदारों ने पीने के पानी का कोई सतत स्रोत बनाया है।‌ ऐसे में निलंबित किए गए कर्मचारियों के साथ तो एक तरह से अन्याय ही किया गया। विभागीय उच्चाधिकारियों को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।वन-विभाग में विभागीय दंड देने के अधिकार प्राप्त और न्याय संगत निर्णय लेने वाले अधिकारी ही अपने निर्णय में पारदर्शिता नहीं रख रहे..? देखने में आया वन विभाग के काष्ठगार ताकू डिपो में पदस्थ रेंजर सहित 4 वन कर्मियों को मुख्यालय ताकू में उपस्थित न मिलने के कारण डीएफओ नर्मदापुरम ने वन कर्मचारी वनरक्षक मुकेश द्विवेदी, कन्हैयालाल मीणा , संजीव दुबे वनपाल और राधेश्याम लिटोरिया सहित उप वन क्षेत्रपाल को निलंबित किया था जो 4 माह हो चले आज भी निलंबित हैं.! जिन्हें निलंबन काल में लगभग 1,25 लाख रुपए प्रतिमाह कि हिसाब से अब तक 5 लाख रु का निर्वाह भत्ते का भुगतान वन मंडलाधिकारी नर्मदापुरम द्वारा किया जा चुका, साथ ही उनके निलंबित रहने से उनके दायित्वों का बोझ अन्य कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा, कर्मचारियों को सामान्य रूप से दंड देने के लिए मुख्य शास्ती के योग्य अपराध में निलंबन का प्रावधान दिया गया है जिसे विभागीय जांच उपरांत दंड का निर्धारण किया जाता है, जो दीर्घ शास्ती के रूप में कठोर दंड होते हैं। और साधारण कर्तव्य त्रुटि के लिए कारण बताओ पत्र जारी किया जाते हैं इसके लिए कर्मचारी को निलंबित किया जाना आवश्यक भी नहीं होता..? जिसमें शासन के निर्देश भी हैं फिर भी विगत 5 माह से उपरोक्त कर्मचारी निलंबन में ही रखे गए हैं क्यों ..? दूसरी तरफ जबकि 11,85,000 रु के रालेगण सिद्धि महाराष्ट्र के भ्रमण में फर्जी होटलों के लाखों रुपए के बिल बना कर घपला किए जाने और 8,81,700 रुपए के औषधि बीज खरीदी मामले में निलंबित किए गए हरगोविंद मिश्रा को मात्र 45 दिनों के बाद बहाल कर दिया गया..! जिनकी विभागीय जांच चल रही है, यह तो कर्मचारियों के प्रति किए जाने वाले भेदभाव को दर्शाता है फिर यहां शासन के निर्देशों को भी नजर अंदाज किया गया है, वन कर्मचारी संघ के संरक्षक द्वारा इस विषय में निवेदन किया जा रहा है लेकिन विभागीय आला अधिकारी इस पर ध्यान नहीं दे रहे ऐसा क्यों..? फिर देखा जाए तो ताकूं डिपो में तो कर्मचारियों के लिए पद के अनुरूप रहने के लिए कोई आवास भी नहीं हैं न वहां विभाग के जिम्मेदारों ने पीने के पानी का कोई सतत स्रोत बनाया है।‌ ऐसे में निलंबित किए गए कर्मचारियों के साथ तो एक तरह से अन्याय ही किया गया। विभागीय उच्चाधिकारियों को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।